Essay on Jhansi Rani in Hindi – Jhansi Rani par nibandh Hindi mein – Short biography of Laxmi Bai

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Essay on Jhansi Rani in Hindi – Jhansi Rani par nibandh Hindi mein

भूमिका : झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भारत की ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण देश को समर्पित कर दिए। 1897 के स्वतंत्रता संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका महत्वपूर्ण थी। उन्होंने इस स्वतंत्रता संग्राम में अंग्रेजों के दांत खट्टे किए और उनसे अकेले ही लोहा लिया। और अपना नाम भारत के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में अंकित किया। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं और हम उनसे जीवन में बहुत कुछ सीख सकते हैं। और उसका अनुसरण भी हम कर सकते हैं। रानी लक्ष्मी बाई के द्वारा किया गया अभूतपूर्व कार्य और उनका योगदान देश कभी भी भूल नहीं पाएगा ।

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का प्रारंभिक जीवन:लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर सन 1828 ई० को काशी में हुआ था। लक्ष्मीबाई का पालन-पोषण बिठूर में हुआ था। उनके पिता का नाम मोरोपंत और माता का नाम भागीरथी बाई था। जब उनकी उम्र 5 साल की हुई तो उनकी मां का देहांत हो गया। बचपन में लोग उन्हें प्यार से छबीली कहा करते थे। इसके अलावा उनका नाम बचपन में मनु बाई रखा गया था। वह पेशवा बाजीराव की मुंह बोली बहन भी थी।

बाल्यावस्था से ही वो पुरुषों के साथ ही खेलना-कूदना, तीर तलवार चलाना , घुड़सवारी करना , आदि करने के कारण उनके चरित्र पुरुषों के समान हो गया था। रानी लक्ष्मीबाई को अपने मातृभूमि से बहुत ज्यादा ही प्रेम था और वह हमेशा अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए तत्पर रहती थी।

रानी लक्ष्मीबाई का विवाह और परिवार : लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के अंतिम पेशवा राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था । विवाह उपरांत इनका नाम रानी लक्ष्मीबाई पड़ा। शादी होने के पश्चात 9 वर्षों तक इन्हें कोई भी औलाद नहीं हुआ और जब इन्हें औलाद हुआ तो वह 3 महीने तक जीवित रहा और उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई।

अपने बच्चे के मरने के कारण वह काफी दिनों तक वियोग में रही थी । बच्चे के जाने के कारण उनके पति राजा गंगाधर तिलक बीमार पड़ गए। हालांकि रानी लक्ष्मीबाई ने दामोदर राव को गोद लिया। 1853 में उनके पति राजा गंगाधर राव का स्वर्गवास हो गया ।

रानी लक्ष्मीबाई का अंग्रेजों के साथ संघर्ष : ब्रिटिश सरकार ने भारत में राज हड़प नीति बनाई थी । जिसके मुताबिक अगर किसी राज्य का उत्तराधिकारी नहीं है तो ऐसे राज्य ब्रिटिश सरकार का अधिकार होगा। इस नीति के अंतर्गत जब झांसी का कोई भी उत्तराधिकारी नहीं बचा तो अंग्रेजों ने झांसी की रानी लक्ष्मी बाई से कहा कि झांसी अब अंग्रेजों के अधीन रहेगी। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों की इस मांग को ठुकरा दिया और अंग्रेजों से युद्ध करने के लिए अपनी सेना तैयार की।

रानी लक्ष्मीबाई का साथ तात्या टोपे, नवाब वाजिद अली, शाह की बेगम हजरत महल, मुगल सम्राट, बहादुरशाह, नाना साहब के वकील अजीमुल्ला शहागढ़ के राजा, अंतिम मुगल सम्राट की बेगम जीनत महल इत्यादि लोगों ने दिया। इसके द्वारा ही 1897 की क्रांति का बिगुल फूंका गया जिसका नेतृत्व रानी लक्ष्मीबाई ने किया।

1857 के संग्राम में रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका: 1857 का संग्राम जिसे भारत का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है उसमें रानी लक्ष्मीबाई की भूमिका अतुल्य और स्मरणीय रही है। इस संग्राम में अंग्रेजों को रानी लक्ष्मीबाई के सामने झुकना पड़ा और उन्हें मजबूर होकर झांसी को रानी लक्ष्मीबाई को सौपना पड़ा था । अंग्रेजों ने दोबारा से 1858 में झांसी पर आक्रमण किया इस बार भी अंग्रेजों को हार का सामना करना पड़ा और झांसी के आगे झुकना पड़ा।

1858 झांसी का युद्ध :1858 का झांसी का युद्ध काफी ऐतिहासिक और विनाशक था। इस युद्ध में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का मुकाबला काफी वीरता पूर्वक किया। इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई ने अपने द्वारा लिए गए दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपने पीठ पर बांधकर अंग्रेजों के साथ युद्ध किया। हालांकि इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई को हार का सामना करना पड़ा।

झांसी का युद्ध पूरा 7 दिनों तक चला इसके बाद झांसी की रानी ने तात्या टोपे, नाना साहब के साथ मिलकर दोबारा से ग्वालियर पर हमला किया और उसमें उनको जीत हासिल हुई।

रानी लक्ष्मीबाई की मृत्यु : रानी लक्ष्मी बाई ने अपने जिंदगी की अंतिम लड़ाई किंग्स रॉयल आयरिश के खिलाफ लड़ीं । इस युद्ध में रानी लक्ष्मीबाई बुरी तरह से घायल हो गई थी और 17 जून, साल 1858 में कोटा के सराई के पास वह वीरगति को प्राप्त हुई।

उपसंहार : रानी लक्ष्मीबाई ने इस बात को साबित किया कि महिलाएं किसी से कम नहीं है। अगर महिलाओं ने यह तय कर लिया कि उनको अपने जीवन में लक्ष्य को प्राप्त करना है तो उनको सफल होने से कोई भी रोक नहीं सकता है। महिला अपने आप में माता दुर्गा की अवतार होती हैं। रानी लक्ष्मी बाई के जीवनी पर कई लोगों ने फ़िल्में और टीवी सीरियल भी बनाए हैं।

रानी लक्ष्मी बाई के द्वारा हमें जीवन में इस बात की प्रेरणा मिलती है कि हमें कभी भी हार नहीं माननी चाहिए और आखरी चरण तक संघर्ष करना चाहिए उनके बारे में मशहूर कवित्री सुमित्रा पंत ने लिखा है-

” बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
“खूब लड़ी मरदानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।

इसलिए महिलाओं को अपने आप को कमजोर नहीं समझना चाहिए समय आने पर रानी लक्ष्मीबाई की तरह वीरता पूर्वक परिस्थितियों का सामना करना चाहिए।


F.A.Q ( अधिकतर पूछे जाने वाले सवाल )

  1. रानी लक्ष्मी बाई कौन थी ?
  2. झांसी की रानी लक्ष्मी बाई भारत की ऐसी वीरांगना थी जिन्होंने अपने मातृभूमि की रक्षा के लिए अपने प्राण देश को समर्पित कर दिए।

  3. रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम ?
  4. रानी लक्ष्मी बाई का बचपन का नाम मनु बाई था।

  5. रानी लक्ष्मी बाई का जन्म दिन और स्थान ?
  6. लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवम्बर सन 1828 ई० को काशी में हुआ था जो वर्त्तमान में उत्तर प्रदेश में स्थित है।

  7. रानि लक्ष्मी बाई के पिता का नाम ?
  8. रानि लक्ष्मी बाई के पिता का नाम भागीरथी था।

  9. रानी लक्ष्मी बाई की माता का नाम ?
  10. रानि लक्ष्मी बाई के माता का नाम मोरोपंत बाई था।

  11. रानी लक्ष्मी बाई का चर्चित युद्ध कोनसा है ?
  12. 1858 का झांसी का युद्ध काफी ऐतिहासिक और विनाशक था। इस युद्ध में झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों का मुकाबला काफी वीरता पूर्वक किया।

  13. रानी लक्ष्मी बाई किस युद्ध में बच्चे को पीठ पर बांध कर लड़ी था ?
  14. 1858 का झांसी के युद्ध में उन्होंने रानी लक्ष्मीबाई ने अपने द्वारा गोद लिए गए दत्तक पुत्र दामोदर राव को अपने पीठ पर बांधकर अंग्रेजों के साथ युद्ध किया।


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